संपादकीय

सन्मति प्रतियोगिता का संयोजन करते करते आप सभी के सहयोग और प्रेम के कारण 18 वर्ष कब पुरे हुवे पता ही नहीं चला।  50 - 100 लोगो से शुरू हुवे इस उपक्रम में सम्पूर्ण देश विदेश से 25 से 30 हजार लोग कब और कैसे जुड़े यह एक शोध का विषय हो सकता है।  क्योकि संस्था ने प्रतियोगिता के प्रचार प्रसार में कभी भी किसी भी मिडिया का विशेष उपयोग नहीं लिया।   प्रतियोगिता से जुड़ा हुवा प्रत्येक सदस्य ही हमारा मिडिया और प्रचारक है।  जो एक दूसरे को इसके बारे में बताते भी है और हमसे निशुल्क प्रतियोगिता अधिक से अधिक मंगवाकर वितरीत भी करते है।   

आपके ही अर्थ सहयोग से जो पुरस्कार हम प्रेषित करते है वह भी जैसे घोषित किया जाता है 100 प्रतिशत वैसे ही देते भी आये है।  चाँदी की वस्तु प्योर चांदी में ही देते है जिन्हे भी मिले है वे विशेष फोन लगाकर अन्य स्थानों की अपेक्षा हमारे संस्था और कार्य प्रणाली की प्रशंसा ही करते है।  अनेक फोन ऐसे भी आते है जो की अन्य स्थानों  के अनुभव बताते है की, पुरस्कार रजत का तो बोलते हैं परन्तु वह वास्तव में रजत का न होकर पोलिश कराकर दे देते है परन्तु हमारे रजत कलश, जाप्य माला से लेकर रजत मुद्रा तक प्योर चांदी का ही देने का निरंतर प्रयास रहा है अपितु यह हमारी संस्था ने शुरुवात से ही इस सिद्धांत पर चलने का एक अपरिवर्तनीय नियम बनाकर रखा है जिसपर लगातार 18 वर्षो से अविरत चल रहे है और निःसंदेह भविष्य में भी चलते रहेंगे।   सांत्वना पुरस्कार में हम मेटल की माला पर गोल्ड पोलिश करके देते आये है उसका भी मुख्य उद्देश्य मात्र प्रतिभगियों का उत्साह वर्धन और उस माला के द्वारा विश्वशांति की मंगल कामना के साथ करोडो जाप्य करना ही रहा है। 

     हमारे संस्था के द्वारा चलाये जा रहे ग्रुप या व्यक्तिगत सन्देश पहुंचते ही अनेक दान दाता अपनी चंचला लक्ष्मी का सदुपयोग करते हुवे स्वेच्छा से पुरस्कार दाता या अंक प्रकाशन सहयोगी दाता बन जाते है संस्था उनके दातृत्व भावनाओ का हृदय से सम्मान करते हुवे उनके प्रति समस्त सन्मति परिवार द्वारा आभार प्रकट करती है।   आपकी भावनाये इसी प्रकार संस्था से जुडी रहे तथा ज्ञानावरणीय कर्मो के क्षयोपक्षम हेतु चलाये जा रहे महायज्ञ में आपके द्वारा यथायोग्य आहुतिया समर्पित होती रहे जिससे आपके ज्ञानावरणीय कर्म जलकर भस्म हो और अन्तस् में एक कैवल्य दिप जले जिसके प्रकाश में शेष कर्मो का क्षय करके शाश्वत सुख को प्राप्त करे यही त्रिलोकीनाथ के चरणों में निरंतर प्रार्थना करते है।